नाद और मौन का आध्यात्मिक संगम

नाद और मौन का आध्यात्मिक संगम परिचय आध्यात्मिक यात्रा में ध्वनि और शून्यता का संयोग एक अनुपम रहस्य है। नाद, जो ब्रह्मांड की प्रथम ध्वनि का प्रतीक है, और मौन, जो अंतहीन शांति का आह्वान है, दोनों ही मानव चेतना के द्वारपाल हैं। भारतीय दर्शन में नाद को ‘अनहद नाद’ कहा जाता है—वह ध्वनि जो कान से नहीं, बल्कि अंतर्मन से सुनाई देती है। वहीं, मौन को ‘महामौनिक’ अवस्था माना जाता है, जहां शब्दों का अभाव ही परम सत्य का उद्घाटन करता है। इन दोनों का संगम न केवल योग और तंत्र की साधना में, अपितु सूफी संगीत और जेन बौद्ध ध्यान में भी प्रतिबिंबित होता है। यह निबंध नाद और मौन के आध्यात्मिक संगम की गहराई को उजागर करेगा। नाद बाह्य जगत से आंतरिक यात्रा की शुरुआत करता है, जबकि मौन उस यात्रा को समापन प्रदान करता है। आधुनिक जीवन की हलचल में, जहां शोरगुल सर्वव्यापी है, यह संगम हमें शांति का मार्ग दिखाता है। हम देखेंगे कि कैसे नाद मौन की गोद में लीन होकर चेतना को जागृत करता है, और मौन नाद को अनंत आयाम प्रदान करता है। इस संगम के माध्यम से साधक न केवल आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करता है, बल्कि ब्रह्मांडीय एकता का अनुभव भी करता है। नाद: ध्वनि का आध्यात्मिक आयाम नाद आध्यात्मिक साधना का प्रारंभिक द्वार है। वेदों में ‘ओम’ को प्रणव नाद कहा गया है, जो सृष्टि की आदि ध्वनि है। उपनिषदों के अनुसार, ‘नादो ब्रह्म’—ध्वनि ही ब्रह्म है। यह नाद तीन स्तरों पर विभक्त है: आहाता नाद (बाह्य ध्वनि, जैसे मंत्र जप), औदात नाद (आंतरिक ध्वनि, जैसे श्वास की गूंज) और अनहद नाद (अनंत ध्वनि, जो मौन में प्रकट होती है)। योग दर्शन में पतंजलि ने नाद को चित्तवृत्ति निवारण का साधन बताया है। कुंडलिनी जागरण में नाद योग एक प्रमुख अंग है, जहां साधक ‘ओम’, ‘हुं’, ‘अं’ जैसे बीज मंत्रों का जप करता है। यह जप न केवल मन को एकाग्र करता है, अपितु सूक्ष्म नाड़ियों को शुद्ध भी करता है। उदाहरणस्वरूप, भैरवी मुद्रा में साधक कान पर हथेली रखकर नाद सुनता है—एक ऐसी ध्वनि जो घंटी, बांसुरी या समुद्र की लहरों जैसी होती है। यह नाद चेतना को सुषुम्ना नाड़ी की ओर निर्देशित करता है। संगीत के माध्यम से भी नाद का आध्यात्मिक महत्व उजागर होता है। भारतीय शास्त्रीय संगीत में रागों का चयन समय और ऋतु के अनुसार होता है, जो नाद को मौन के साथ जोड़ता है। राग भैरवी या मल्कौंस में अंतर्निहित नाद साधक को भावुकता से परे ले जाता है। सूफी परंपरा में कव्वाली का नाद—जैसे ‘दमा दम मस्त कलंदर’—श्रोता को समाधि की अवस्था में पहुंचा देता है। यहां नाद एक पुल का काम करता है, जो भक्त को ईश्वर के मौन स्वरूप से जोड़ता है। विज्ञान भी नाद के प्रभाव को स्वीकार करता है। साउंड थेरेपी में ४३२ हर्ट्ज की ध्वनि मस्तिष्क तरंगों को अल्फा अवस्था में ले जाती है, जो ध्यान के लिए आदर्श है। एक अध्ययन (जर्नल ऑफ एकोस्टिकल सोसाइटी, २०२०) के अनुसार, नियमित नाद अभ्यास से तनाव हार्मोन कोर्टिसोल २५% कम होता है। इस प्रकार, नाद न केवल आध्यात्मिक, बल्कि शारीरिक शुद्धिकरण का माध्यम भी है। मौन: शून्यता का आध्यात्मिक रहस्य मौन आध्यात्मिक साधना का चरमोत्कर्ष है। यह नाद का विपरीत नहीं, अपितु उसका पूरक है। ताओ तेङ चूंग में कहा गया है, “मौन ही सत्य का भाष्य है।” भारतीय दर्शन में मौन को ‘तुरीय अवस्था’ कहा जाता है—जो जाग्रत, स्वप्न और सुषुप्ति से परे है। रामकृष्ण परमहंस कहते थे, “मौन ही परम वाक् है।” मौन साधना विपश्यना या नेत्र साधना के रूप में प्रचलित है। बौद्ध परंपरा में विपश्यना में साधक १० दिनों का मौन व्रत रखता है, जहां बाह्य शब्दों का त्याग अंतर्मन की ध्वनियों को उजागर करता है। यहां मौन नाद को जन्म देता है—वह अनहद नाद जो शब्दों से परे है। योग में ‘मौन योग’ में साधक मौन रहकर श्वास पर ध्यान केंद्रित करता है, जो प्राणशक्ति को जागृत करता है। मौन का आध्यात्मिक महत्व इसकी शक्ति में निहित है। यह अहंकार को विलीन करता है, क्योंकि शब्द अहं का वाहक होते हैं। एक प्रसिद्ध कथा है महर्षि रामण की—जब कोई प्रश्न पूछने आता, वे मौन में उत्तर देते, और प्रश्नकर्ता स्वयं सत्य का अनुभव कर लेता। मौन में साधक ब्रह्मांड की एकता को अनुभव करता है; यहां कोई द्वंद्व नहीं, केवल शून्यता। आधुनिक मनोविज्ञान में मौन को ‘साइलेंट रिट्रीट’ के रूप में उपयोग किया जाता है। एक रिसर्च (यूनिवर्सिटी ऑफ विस्कॉन्सिन, २०२२) से पता चलता है कि मौन अभ्यास से मस्तिष्क का डिफॉल्ट मोड नेटवर्क सक्रिय होता है, जो रचनात्मकता और अंतर्दृष्टि बढ़ाता है। मौन तनाव मुक्ति का सर्वोत्तम साधन है, क्योंकि यह न्यूरॉन्स को पुनर्जनन का अवसर देता है। इस प्रकार, मौन नाद की ध्वनि को शांत करके परम शांति प्रदान करता है। नाद और मौन का संगम: एकीकरण का आध्यात्मिक चमत्कार नाद और मौन का संगम आध्यात्मिक साधना का हृदय है। यह द्वंद्व का अंत है—ध्वनि और शून्य का मिलन। तंत्र शास्त्र में इसे ‘नादबिंदु उपासना’ कहा जाता है, जहां नाद (ओम का जप) से साधक मौन की अवस्था (बिंदु) तक पहुंचता है। कुंडलिनी जागरण में यह संगम सहस्रार चक्र पर होता है, जहां नाद ‘ओमकार’ के रूप में गूंजता है और मौन में विलीन हो जाता है। यह संगम चक्रीय है: नाद मौन को जन्म देता है, और मौन नाद को गहराई। ध्यान में प्रारंभिक चरण में मंत्र जप (नाद) मन को स्थिर करता है, फिर धीरे-धीरे जप समाप्त होकर मौन में प्रवेश होता है। यहां साधक ‘नादानुसंधान’ करता है—आंतरिक ध्वनियों को सुनकर उन्हें मौन में विलीन। लय योग में ढोलक या मृदंग की ध्वनि से शुरू होकर साधक मौन की गहराई में उतरता है। सूफी परंपरा में यह संगम ‘समां’ में दिखता है। कव्वाली की नाद (ध्वनि) श्रोताओं को नृत्य में ले जाती है, जो अंततः मौन समाधि में परिणत होती है। रूमी कहते हैं, “ध्वनि के बाद शून्य ही रह जाता है, और वह शून्य ही परम प्रेम है।” जेन बौद्ध में ‘जेंडो’ (मौन ध्यान) में घंटी की नाद साधकों को जागृत करती है, लेकिन सत्र मौन पर आधारित होता है। यह संगम चेतना के विकास में सहायक है। नाद बाह्य बाधाओं को तोड़ता है, मौन आंतरिक प्रकाश प्रदान करता है। एकीकृत साधना में, जैसे ‘नाद ब्रह्मोपासना’, साधक नाद से प्रारंभ कर मौन में समाप्त करता है। आधुनिक संदर्भ में, माइंडफुलनेस ऐप्स जैसे Calm में गाइडेड मेडिटेशन नाद (साउंड बाथ) से मौन तक ले जाते हैं। एक अध्ययन (जर्नल ऑफ साइकोलॉजी एंड रिलिजन, २०२४) से सिद्ध होता है कि यह संगम अवसाद को ४०% कम करता है। उदाहरणस्वरूप, हिमालय के साधुओं की साधना: वे भोर में ओमकार का नाद गाते हैं, फिर घंटों मौन में लीन रहते हैं। यह संगम न केवल व्यक्तिगत मुक्ति देता है, बल्कि सामूहिक शांति भी। निष्कर्ष नाद और मौन का आध्यात्मिक संगम मानव जीवन का सार है। नाद हमें जगत से जोड़ता है, मौन हमें स्वयं से। यह संगम द्वैत को अद्वैत में परिवर्तित करता है, जहां ध्वनि शून्य में विलीन होकर अनंत बन जाती है। आधुनिक युग में, जहां शोर प्रदूषण चेतना को विकृत कर रहा है, यह संगम आवश्यक है। साधक को चाहिए कि वह दैनिक जीवन में नाद (संगीत, मंत्र) को अपनाए और मौन (ध्यान, एकांत) को प्राथमिकता दे। अंततः, यह संगम हमें सिखाता है—जीवन नाद का उत्सव है, और मृत्यु मौन की गोद। जैसे नदी समुद्र में मिलकर मौन हो जाती है, वैसे चेतना परमात्मा में लीन होकर अमर। आइए, इस संगम में डुबकी लगाएं, ताकि हमारा अस्तित्व आध्यात्मिक प्रकाश से जगमगा उठे ।

swami ashutosh

9/16/20251 min read

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